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पूरा देश आजादी का जस्न मनाने जा रहा है .और जोर शोर से जसन की सारी तैयारिया की जा रही है.और अमर सहिदो को एक बार फिर से साल में याद भी किया जा रहा है की किन किन कुर्बानियों के बाद हमारे पूर्वजो ने हमें आजादी दिलवाये पर क्या हम आज उस आजादी को बरक़रार रखने कई लिए प्रयत्न कर रहे है इह है सवाल की आज उपभोगता बादी संस्कृति पूरी तरह हाबी हो गए है और हमें अपने से ही फुरसत नहीं है लोग सिर्फ खुद का सोच रहे है देश रहे या ना रहे सोचने वाले कम ही मिलेगे .देश में हो रही आतंकवादी घटनाये जोर शोर से अपना जाल फैला रही है .किशी घटना के बाद हम कुछ समय के लिए सिर्फ अफसोश जाता कर अपने काम में लग जाते है बाद में फुरसत ही कहा है .पर ऐसा कब तक चलेगा .सोचिये कितने दुखो के बाद हमें आजादी मिली और हम सब भूल गए जहा देखो भ्रस्ताचार ही भ्रस्ताचार सुरसा की तरह मुह बाये खरा है .क्या हमारे पूर्वजो ने इस दिन के लिए सोचा था जी नहीं .वक़त रहते सोचना होगा तभी तो यह आजादी कायम रह सकती है नहीं तो पूर्वजो की कुर्बानिया बेकार ना हो जाये.
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