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हम हिन्दुस्तानियो की किस्मत ही ख़राब है कहने को तो हिंदुस्तान एक लोकतान्त्रिक देश है पर ऐसा लगता नहीं क्योकि आजादी के ६३ साल बाद भी हम पूरी तरह आजाद है यह कोई हिन्दुस्तानी मानने को कतई तैयार नहीं होगा क्योकि उसके सामने अनेको समस्या आज भी मौजूद है जो बार बार आम हिन्दुस्तानियो को संपूर्ण आजादी का अहसाह नहीं करवा पाया है और यह एक विकराल समस्या है देश पर राज करने वाले सिर्फ अपनी राजनितिक रोटी सकने में मशगुल रहे और आज भी स्तिथि वैसी ही है जैसी ६ दसक पहले तो आखिर कैसी आजादी देश की ४० प्रतिसत आबादी गरीबी रेखा से निचे जीवन यापन को मजबूर है लोग भूखे नंगे सडको किनारे रहने को मजबूर है और नेता वातानुकूलित कमरों में आराम फर्मा रहे है आखिर यह कैसा इंसाफ है .अब मुद्दे पर आया जाये देश के नेताओ की यदि जात और ईमान की बात की जाये तो यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा की इनका ना तो कोई जात है और ना ही ईमान क्योकि ये जिस थाली में खाते है उसी में छेद करते है चाहे वह कोई भी राजनीतक दल हो उसमे लगातार उलट पलट आप देख सकते है की कैसे नेता अपने लाभ के लिए लगातार पार्टी बदल करते है इनके लिए सिधांत मर्यादा कुछ नहीं है बस इन्हे तो सत्ता का मजा चाहिए चाहे वो जनता की लाश पर ही क्यों ना मिले .देश के राजनीतिज्ञ अपनी जनता को जितने के बाद कुत्ता बिल्ली समझते है और हिन् भावना से देखते होई मन में यही सोचते है की ५ साल तो अब हमारा ही राज होगा तुम्हारे जिंदगी पर अब कहा जाओगे और लोग यही सोच कर खामोश हो जाते है की नेता ऐसा ही होता है करे तो क्या करे क्योकि अब जय प्रकाश नारायण जैसे लोग कहा मिलते है या फिर लाल बहादुर सस्त्री और पटेल जैसे नेता .
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