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कश्मीर की कशमकश

RAJESH _ REPORTER
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पिछले ३ -४ महीने से कश्मीर घटी में हिंसा का दौर जरी है और वहा का युवा वर्ग सडको पर उतर कर अपनी ताकत दिखा रहा है .हिंसा में अब तक दर्जनों नौजवान मारे जा चुके है पर अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है .सरकार का मानना है की कश्मीर में सेना के अधिकारों को कम कर देने मात्र से वहा सन्ति बहल हो जाएगी पर ऐसा लगता तो नहीं है क्योकि अलगाव वादी तकते जिस तरह से कश्मीर में सक्रिय है और उनके द्वारा दिए गए भारत विरोधी बयानों से तो यही लगता है की कश्मीरी नेता पूरी तरह से पाक प्रायोजित आतंकवाद के समर्थक है .और इन लोगो ने सोच रखा है की
भारत विरोधी गतिविधिओ को अंजाम देकर ही अपनी राजनितिक रोटी सेकी जा सकती है और ये अब वैसा ही कर रहे है युवाओ को हिंसा का रास्ता दिखा कर..कश्मीर में जनता की चुनी हुई सरकार है और लोक तंत्र में राज्य सरकार का ही जिम्मा होता है की अपने राज्य के लोगो को हिंसा से मुक्त रखते हुए लोगो को राज्य की खुशाली और अमन चैन में सामिल करे लेकिन उमर अब्दुल्लाह की सरकार ऐसा नहीं कर पा रही है और जबाब देहि सेना के माथे पर थोपा जा रहा है जो की अनुचित है .यदि कश्मीर में सेना के अधिकारों को कम किया जाता है तो यह पाकिस्तान की जीत होगी क्योकि पाकिस्तान बार बार आतंकवादियो की घुसपैठ करवा कर भारत विरोधी गतिविधिओ को अंजाम देता है और सेना का मनोबल कमजोर होने के बाद हमारे सैनिक भी बहुत सोच समझ कर ही उन घुसपैठियो पर करवाई करेगे क्योकि उन्हें मानवाधिकार वालो का डर लगा रहेगा .आज कश्मीर के जो हालत है उसके पीछे केंद्र और राज्य सरकार पूरी तरह से जिम्मेवार है यदि समय रहते कश्मीर समस्या को सुलझा लिया जाता तो आज यह हालत नहीं होता लेकिन अभी भी कुछ बिगरा नहीं है यदि सरकार चाहे तो समस्या से निजात मिल सकता है बस वोट बैंक की राजनीती से ऊपर उठ कर सोचना होगा लेकिन सेना का मनोबल तोड़ कर नहीं .

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