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माँ जब थी तो होली होली थी .कहा गई अब होली में वो ठिठोली वो लड़कपन सब सस्मरण ही तो बन कर रह गए है .होली के चार दिन पहले से ही तयारी सुरु हो जाती थी कोई गुझिया बना रहा है तो कोई पुए में लगने वाले सामानों का लिस्ट वही बच्चे भी कहा पीछे रहने वाले थे कोई दौर कर माँ के पास आता और कहता अभी तक कपडे नहीं ख़रीदे गए आखिर कब ख़रीदे जायेगे माँ सब को संतुस्ट करती अरे अभी तो समय है आ ही जायेगा लेकिन बच्चो की जिद तो आखिर जिद होती है भला वो माने जब तक उनकी जरुरत पूरी ना हो जाये सब की अलग अलग फ़र्मैएस किसी को बन्दुक वाली पिचकारी चाहए तो किसी को चमकीला रंग सब की अलग अलग फ़र्मेइस से परेशां हो कर पिता जी को बाजार भेजा जाता और पिता जी एक एक सामान समय पर ला कर देते उसके बाद होती थी होली .होली के दिन सुबह से ही रसोई में माँ और भाभी पकवान बनाने में लग जाती लेकिन हम थे की पकवान से कहा मतलब हमें तो अपने दोस्तों की ठिठोली और मटरगस्ती भाती थी और निकल जाते दोस्तों के साथ ढोल और बाजा लेकर एक से एक दोस्त कोई नाच रहा है तो कोई गीत गा रहा है और उसपर मिलने वाले राहगीर उनकी तो खैर कहा हमारी टोली जहा से गुजरती लोग बच कर निकलना चाहते लेकिन आखिर बचे तो बचे कैसे आखिर हम भी तो थे होली की मस्ती में पुरे डूबे हुए जो भागने की कोशिश करते उन्हें दौड़ कर पकड़ा जाता फिर तो उनकी जो गत बनती की देखने वाले देखते रह जाते और बेचारे हमारे होली के बकरे साहब भी तब तक होली की पूरी मस्ती में डूब चुके होते और हमारी मंडली में सामिल होकर होली के धुनों पर नाचने लगते ना ही कोई बंदिश होती और ना ही तबियत ख़राब होने का डर उसके बाद तो फिर कहने ही क्या सब लोग रंगों में डूबे हुए मस्ती की धुन में थिरकते गिरते पड़ते हमारी टोली मित्रो के घर पहुचती और वहा सुरु हो जाता हुडदंग सब दोस्तों के यहाँ घूमते फिर मित्रो से बिदा होकर अपने घर पहुचता तो माँ का उलाहना इतना भी कोई रंग खेलता है तबियत ख़राब हो जाएगी उलाहना सुनते हुए बाथरूम में घुस जाता जयेसे कुछ सुना ही ना हो माँ फिर चुप हो जाती और खाना ले आती ये तो थी होली लेकिन ना तो अब माँ है और ना ही होली की वो मस्ती वही दोस्त भी अपने अपने काम में इतने वएस्त हो गए की होली सिर्फ २१ इंच के telivision तक ही सिमट कर रह गई होली आज भी आती है वही उल्लाश है लेकिन अब उसे मानाने का वो उमंग नहीं है …….माँ को शत शत नमन …………..
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