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बाबा रामदेव ४ जून से जंतर मंतर पर अपने दल बल के साथ आमरण अनशन पर बैठने जा रहे है .भारत के आम जन मानश के अन्दर यह सवाल तेजी से उभर कर सामने आ रहा है की क्या योग गुरु भी योग सिखाते सिखाते राजनीती के अखाड़े में उतर रहे है या फिर उनके अन्दर भी भारत से भ्रस्ताचार मुक्त करवाने का भुत सवार हो चूका है.यह सवाल इस लिए भी जाएदा लोगो को परेशां कर रहा है क्योकि बाबा ने आज तक जितने भी ब्यान दिए सब नपे तुले राजनीतिज्ञों की तरह ही दिए उन्होंने ना तो कभी खुल कर यह कहा की राजनीती नहीं करेगे और ना ही खुल के कहा की राजनीती में आना उनका लक्ष्य है लेकिन पिछले कुछ दिनों की उनकी बातो और उनकी पुरे देश में चल रही भारत स्वाभिमान यात्रा पर गौर करे तो उसका उद्देश राजनितिक ही लगता है .1965 में छोटे से एक गाँव में जन्मे बाबा राम देव मात्र 8 वी. क्लास तक की पढाई के बाद गुरुकुल सिक्षा ग्रहण करने चले गए और तब उनका उद्देश था भारत में योग और आयुर्वेद को जन जन तक पहुचना और इसके द्वारा सस्ते से सस्ता उपचार मुहैया करवाना लेकिन बाबा ने योग विद्या के बल पर ११००० ग्यारह हजार करोड से भी अधिक की संपत्ति अर्जित की है वही स्वामी के आदर्श दयानंद सरस्वती ,स्वामी विवेका नन्द और सुभाष है जिन्होंने हिंदुस्तान की गौरवशाली अतीत को विदेशो तक पहुचाया लेकिन कभी धन बल की लालशा नहीं की दूसरा सवाल जो उठता है की आखिर बाबा योग सिखाते सिखाते अपने सहयोगियो को राजनीती क्यों सिखाने लगे .बाबा की यात्रा जहा जहा जाती है वहा बाबा भ्रस्ताचार ,कालाधन जैसे मुद्दों को जरुर आम जनता से अवगत करवाते है और संकल्प भी करवाते है की लड़ाई में उनका जनता साथ दे तो क्या बाबा परोक्ष रूप से राजनीती कर रहे है और उनका सारा संघर्ष सत्ता प्राप्ति के लिए है
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