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26 जनवरी 1950 को जिस भारतीय संविधान को हमने अंगीकार किया क्या आज वो भारतीय संविधान बूढ़ा हो गया है और उसमे बदलाव की आवश्यकता है अभी तक कुल ९४ सुधार हमारे संविधान में किये जा चुके है और समय समय पर राजनितिक दल द्वारा बदलाव की बात की जाती रही है लेकिनं आज तक इसमे जितने भी सुधार हुए उसमे राजनीतिज्ञों ने सिर्फ अपना ही लाभ सोचा और किया आम जनता को उसका सीधा लाभ नहीं मिल पाया है इस लिए यह सवाल अब सामने आने लगे है की इसमे बदलाव होना ही चाहिए 1950 और आज की परिस्थिति में काफी बदलाव आ चुके है तब के नेता और अब के नेताओ में जमीन आश्मान का अंतर दिखने लगा है आज चहुऔर भार्स्ताचार की गंगोत्री बह रही है तो कही स्वयं के लाभ के लिए हजारो घर उजारे जा रहे है जिसके लिए नेता के साथ साथ कही ना कही आम जनता भी दोषी है .आज भी हमरा भारत एक यूनियन स्टेट ही है ना की एक स्वतंत्र रास्ट्र हम आज भी ब्रिटेन के बनाये कानूनों से बंधे है .धर्मनिरपेक्षता के नाम बहुसंख्यक आबादी पिश्ती चली जा रही और संविधान का हवाला देकर और दबाया जा रहा है सबसे बड़ी बात की अगर सरकार गलती करे तो उसका कुछ नहीं बिगारा जा सकता है उदाहरण के लिए अगर ट्रेन घंटो लेट पहुचे तो हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन हम लेट हो गए तो हमारा रुपया कट जायेगा आखिर यह कैसी बेवस्था है ऐसे दर्जनों नहीं हजारो सवाल है जैसे संविधान कहता है समता का अधिकार जिसके तहत धर्म ,लिंग,जाति,मूलवंश के आधार पर कोई विवेध नहीं किया जायेगा लेकिन क्या आज सरकार जो योजनाये बना रही है उसमे जाति ,लिंग और धर्म को आधार नहीं बनाया जा रहा है यदि ऐसा नहीं है तो बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार धर्म के आधार पर सिर्फ मुस्लिम छात्रों को ही क्यों हाई स्कूल की परीक्षा में टॉप करने पर 10000 /- रुपया दे रहे है .संविधान कहता है की तिरंगे और रास्ट्र गान का सम्मान करे लेकिन कश्मीर में आये दिन तिरंगा जलाया जाता है और कोई करवाई नहीं होती आखिर क्यों .वही देश का कोई अनपढ़ भी प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति ,मंत्री बन सकता है और १२० करोड की आबादी के भाग्य का फैशला कर सकता है वही उम्र की तो सीमा ही नहीं है ३५ के बाद का कोई भी चाहे वो ९९ साल का ही क्यों ना हो मंत्री बन जाये कोई रोकने वाला नहीं तो क्या अब वो समय नहीं आ चूका है की इस बूढ़े संविधान में फिर से एक बार जान डालने की कोशिश की जाये जिससे की हमारा लोकतंत्र अछुन्य बना रहे .
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