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नाम है पत्रकार वो भी प्रतिष्ठित समाचार चेनल के लेकिन हालत भिखमंगो से भी बदतर .जी हा यह दर्द कोई एक का हो तो कोई बात नहीं लेकिन यह आकड़ा सैकड़ो हजारो में है .देश में बाजार वाद ने जैसे जैसे अपने पाव पशारे वैसे वैसे बाजार में समाचार चेनल और अखबारों की भी होड़ लग गई और इन्हे चाहिए एक अदद पत्रकार जो इन्हें सबसे पहले खबर ब्रेक करवाए .देश में बेरोजगारी इतनी की बेचारे फस गए इनके प्रलोभन में बड़ा नाम सोहरत के साथ रुपया भी तो आखिर कोई क्यों ना फसे घर वाले भी इठलाते मेरा बेटा पत्रकार है कुछ दिनों तक तो ठीक ठाक चला वक़्त बिता तो बड़े साहबो की फितरत से रु बरु होने लगे बेचारे पत्रकार महगाई कमरतोड़ और तनख्वाह तीन शुन्य भी पार नहीं अब बेचारे जाये तो जाये कहा वर्षो इस काम में गुजार दिए तो दूसरा काम हो कैसे हालत हो गई मनमोहन सिंह जैसी कुर्शी तो प्रधान मंत्री की लेकिन अम्मा सोनिया जो कहेगी वही होगा कुछ यही हाल है आज के पत्रकार समाज का कोई उनका दर्द समझने वाला नहीं बड़े सहरो में रहने वाले उची कुर्शी को सोभायमान पत्रकारों की जमातो को सायद यह दर्द नहीं हो लेकिन छोटे सहरो में रहने वालो का यह दर्द है जो अक्सर सुनने को मिलता है .बड़ी जिम्मेवारी का निर्वहन करने वाले सबको सच्चायो से रूबरू करवाने वाले साइकिल और मोटर साइकिल से आपतक समय पर खबरों को पहुचने वालो का दर्द सुनने वाला कोई नहीं है ना तो सरकार में बैठे मुलाजिम और ना ही उनके अपने अगर कोई अनहोनी घाट जाये तो तुरंत आप को निकाल बहार किया जायेगा एक बार भी यह नहीं सोचा जायेगा की उसने तो बड़ी बड़ी टी आर पी वाली खबरे दी उसकी खबरों से हमारे अख़बार के प्रचार पराशर में बढ़ोतरी हुई बस तुरंत ही पल्ला झाड़ कर दुसरे दिन ही आपके नाम की खबर छाप दी जाएगी की फलाने से हमारा कोई नाता नहीं .आखिर ऐसा क्यों लोक तंत्र का चौथा स्तम्भ कहलाने वाला मिडिया जगत जिससे देश समाज को बड़ी बड़ी आशाये बंधी हो वो अपने ही भाईऔ पर क्यों इस तरह जुल्मो सितम करती है एक मजदुर की भी दैनिक मजदूरी आज के महगाई में २००-३०० रपये है तो क्या एक स्नातक मजदूरो से भी गया गुजरा है कौन सुने इनका दर्द किसी जिम्मेवारी है इनके प्रति इनके परिवारों के प्रति .जरा आप भी सोचे ?
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