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हर माता पिता की यह इक्षा होती है की वो अपने बच्चो को बेहतर और गुणवत्ता परक शिक्षा दिलवाए और यही सोच कर माता पिता अपना पेट काट कर रूपये बचाते है लेकिन आज देश की शिक्षा पद्दति के साथ खिलवाड़ कर सरकार भारत के बुनियाद को हिलाने में लगी है और पूरा देश मूकदर्शक बन देख रहा है वही चाहे कोई गैर सरकारी संगठन हो या फिर छात्र संगठनो द्वारा भी इसके विरोध में मुह नहीं खोलना इन संगठनों पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है .वर्ष १९९८ से ही शिक्षा का व्यापारी करण पुरे जोर शोर से चल रहा है और देखते देखते भारत शिक्षा के बड़े बाजार के रूप में उभर कर सामने आ गया देश के कोने कोने में कुकुरमुत्ते की तरह उग आये संस्थानों में शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान ना देकर धन उगाही का माध्यम बन चुके शिक्षण संस्थानों में ना तो गुणवत्ता वाले शिक्षक ही नजर आते है और ना ही वो शिक्षा पद्दति जो भारत को दुनिया से अलग रखती थी आज इन शिक्षण संस्थानों में बड़े बड़े कमरे तो नजर आते है लेकिन गुणवत्ता परक शिक्षा जो छात्रो को मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पाता .जब से शिक्षा छेत्र में विदेशी कंपनिया आई तब से ही मूल्यों में गिरावट आ गई आज देश में शिक्षा को भी एक व्यापर बना दिया गया है .कंपनियों के आकलन के मुताबिक अभी देश में उच्य शिक्षा का बाजार ३० बिलियन अमरीकन डालर ही जो की अगले २०१५ तक बढ कर ५५ बिलियन अमरीकन डालर तक पहुच जायेगा विदेशी कंपनिया भारत की उभरती अर्थ वेब्स्था को देख कर सिर्फ अपना लाभ देखने के लिए हिंदुस्तान में निवेश कर रही है ना की यहाँ के युवाओ की क्योकि अगले २०3० तक देश में युवाओ की आबादी बढ़ कर २२० मिलियन हो जाएगी और यह आबादी दुनिया में सबसे बड़ी आबादी होगी युवाओ की जिससे चीन भी पिचड जायेगा और युवाओ की एस बड़ी आबादी ( २२० मिलियन) को शिक्षा चाहए जिस बाजार को देख कर अभी से ये विदेशी शिक्षण संसथान भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देख रही है जिन्हें गुणवता की फ़िक्र नहीं उन्हें तो सिर्फ अपना लाभ चाहिए . अगर समय रहते इस पर विचार नहीं किया गया तो जिस भारतीय शिक्षा पद्दति की दुनिया लोहा मानती है उसे डुबाने में हमारा ही सबसे बड़ा हाथ होगा .
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