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ये साली कुर्शी भी क्या चीज है जो एक बार चिपक कर बैठ जाये वो उठने का नाम ना ले चाहे कितनी भी भद पिट जाये लेकिन कुर्शी रहनी चाहिए .अब अपने यदुरप्पा को ही ले लो इन्हे कुर्शी की ऐसी माया हुई की पुरे कुनबे में ही सुनामी ला दी बेचारे जेटली राजनाथ पहुचे मन्मनौअल किया चिरोरी बिनती की तब जा कर कुर्शी छोड़ने को राजी हुए , अरे आखिर क्यों इस कुर्शी की इतनी माया ? कहते तो हो अपने आप को जनता का जन्प्रतिन्धी और सेवक लेकिन जब कुर्शी पर बैठ गए तो अपने को भगवन मानने लगे मुझे नहीं लगता की आज से पहले राजनितिक इतिहाश में इस तरह की चिरौरी किसी राष्ट्रीय पार्टी ने की होगी अपने मुख्यमंत्री के साथ लगभग एक वर्षो से यदुरप्पा को लेकर कोहराम मचा रहा पहले तो पार्टी ने भी खूब बखान किया कर्णाटक में साशन और यदुरप्पा का लेकिन जब देखा की अब गले की हडी बन चुके है यदुरप्पा जो की अब ना निगले बनता और ना उगले तो बेचारे करे तो क्या करे खुद को स्वक्ष बताने वाले ये, तो है कुर्शी की माया जिसे बिठा दो आज कल इस कुर्शी पर वही भगवन बन जाता है अब बेचारी इसमें कुर्शी का तो कोई दोष नहीं वो तो जो उसपर बैठता है उसी की वफादार हो जाती है अब बैठने वाला ही ना उठे तो वो क्या करे सिर्फ यदुरप्पा ही ऐसे है ऐसा नहीं है असंख्य नेता जिन्ह्वे एक बार सत्ता सुख मिल गया उन्हें सत्ता की ऐसी माया होती है की बेचारे इसके बिना रह ही नहीं पाते क्योकि नेता वैसे होते ही है अगर इन्सान होते तो जरुर बड़े छोटे का सम्मान करते और कुर्शी छोड़ दते आखिर कुर्शी में बैठने के अपने भी तो कुछ फायेदे है आखिर आज कल हम स्वार्थी भी तो हो गए है नेता जी को भगवान बना कर हम ही तो भेज देते है कुर्शी पर है कुछ जबाब तो बोल ही दीजयेगा क्योकि मामला कुर्शी से जुड़ा है …….कुर्सी
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