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देखते देखते एक वर्ष गुजर गए माँ को गए हुए आज ही वो पंचमी का दिन है जब माँ हमें अकेला छोड़ चली गई देखते देखते ये दिन कैसे गुजर गए माँ की यादो में कुछ पता ही ना चला ऐसा लगता है माँ अभी तो यही थी वो कैसे जा सकती है इतनी जल्दी हमें अकेला छोड़ कर लेकिन सच तो सुच है की आखिर माँ हम सब को छोड़ कर चली गई भरा पूरा परिवार है हमारा लेकिन माँ की बिना सब सुना सा लगता है वो उनकी बताई बाते सोच सोच कर मह्सुश होता है की वो जो कहती थी समझती थी सब बाते आज सच लगती है आखिर क्या नहीं था उनके पास लेकिन उन्होंने कभी आडम्बर नहीं किया और ना ही हमें यह सिखया लोगो की मदत उनके दुःख दर्द में सामिल होना दुसरे के दर्द को समझना तो जैसे उनके लिए कुछ था ही नहीं हर वक्त वो इन बातो का ध्यान रखती की उनके पास से कोई खली हाथ ना लौटे लेकिन अगर अनुसाशन की बात हो तो उसमे भी पक्की गलती करने पर तो कोई डर से सामने जाये ना हमेशा न्याय पसंद थी अम्मा पोते पोतिओ को खुद अपने बल बूते पर बड़ा किया हमेशा बच्चो से घिरी रही अम्मा कभी कभी बच्चो की नादानी पर झल्ला उठती तो पिट भी देती लेकिन कुछ ही पलो बाद फिर से वही लाड पयार ऐसी थी अम्मा लेकिन देखते ही देखते ऐसा बीमारी ने जकड़ा की फिर वो दुबारा उठ ना पाई और प्राण उड़ गए जीने की बड़ी इक्छा थी उनके अंतिम अंतिम समय तक हिम्मत नहीं हारी लेकिन हम उन्हें रोक नहीं पाए .
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