- 169 Posts
- 304 Comments
बड़ा दुःख होता है जब किसी के मुह से यह सुनता हु की क्या हम आजाद है लेकिन यह सत्य है की जिस आजादी की कल्पना हमारे पूर्वजो ने की थी उस आजादी से हम कोसो दूर है और बार बार हम असली आजादी के लिए तड़पते रहते है जिस सम्पूर्ण आजादी के लिए लाखो करोडो सपूतो ने कुरबानिया दी सहीद हुए वो आजादी हमें आज तक नहीं मिली तो इसके पीछे के कारन खुद हम ही है कोई और नहीं .सही अर्थो में यदि ले तो हमें ६४ वर्षो में सिर्फ राजनितिक आजादी मिली है और हम उसे ही असली आजादी समझ चुके है कभी हम ब्रिटिश हुकूमत के गुलाम थे आज ५७४ सांसदों के गुलाम है जो की हमें अपना नीतिनियंता समझते है हम ही इन सांसदों को चुन कर भेजते है लेकिन उसके बाद यही सांसद खुद को हमारा भाग्यविधाता समझ बैठते है आखिर ऐसा क्यों है यह जानने का प्रयाश हमने कभी नहीं किया सिर्फ खुली हवा में साँस लेने को ही हम आजादी समझ चुके है और नीतिनियंता खुद को हमारा भगवान लेकिन इन निति नियंताओ को यह नहीं पता की इतिहास करवट बदलता है और आज इतिहास करवट बदलने की राह पकड़ चूका है जिसका नतीजा है की सड़को पर जनसैलाब का उतरना जो की सिर्फ सम्पूर्ण आजादी की चाह रखता है यह हमारे देश की विडम्बना ही है की संविधान का निर्माण तो किया गया लेकिन उसमे भी हमारे तथा कथित नीतिनियंता सिर्फ और सिर्फ अपना एकाधिकार सम्झ्बैठे है और जिसकारण से संविधान द्वारा प्रदत अधिकारों का लाभ पूरी आबादी को ना मिल कर चंद हाथो में सिमट कर रह गया है जिसके कारन ६४ वर्षो बाद भी लोकतंत्र ,लोकशाही के मकडजाल में फस कर शने शने साशे गिन रहा है पूरा देश आसिक्षा ,कुपोषण ,गरीबी,भ्रष्टाचार से अभी भी मुक्त नहीं हुआ है ,सरकारी योजनाये सिर्फ घोस्नाओ तक ही सिमटी हुई है,हर कार्यालय में भ्रस्ताचार का बोलबाला है बिना घुस दिए हुए आप की फाइल आगे नहीं बढ़ सकती योजनाओ का लाभ आम नागरिको तक ना पहुच कर उन लोगो तक पहुचता है जिनको इसकी आवस्यकता ही नहीं वही देश की आधी आबादी घुट घुट कर जीवन यापन करने को विबस है जिसके पीछे सिर्फ एक कारन है की हम खुद को उन भाग्याविधाताओ के सहारे छोड़ चुके है जिन्होंने कभी हमारे बारे में सोचा ही नहीं उन्होंने हमेशा अपना लाभ देखा और उसी कानून को अमली जामा पहनाया जिसमे उनका स्वार्थसिद्धि हो और और यही कारन रहा की हम आजाद होते हुए भी आज आजाद नहीं है आज अन्ना ने हिन्दुस्तानियो को एक नई राह दिखाई है इससे पहले भी सम्पूर्ण आजादी की चाहत में १९७४ में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में यह मांग उठ चुकी है और जे .पी आन्दोलन में भी लोगो ने जम कर अपने अधिकारों के प्रति जनता ने आवाज उठाई थी और कुछ अमूल चुल परिवर्तन भी हुए थे लेकिन जेपी आन्दोलन के बाद एन ३४ वर्षो में फिर से एक बार आन्दोलन की आवश्यकता आन पड़ी क्योकि इन ३७ वर्षो में नेताओ ने संविधान में बार बार परिवर्तन कर अपने अधिकारों को तो बढ़ा लिया लेकिन जनता के अधिकारों को कम करते गए तभी तो ये कांग्रेसी नेता आज खुद को जनता के नुमैन्दे ना समझ कर जनता का मालिक समझ बैठे है यही नहीं संसद में हमारे नेता जिनको चुन कर खुद हमने भेजा वो जनता द्वारा चलाये जाने वाले जन आन्दोलन का बहिस्कार करते है और आन्दोलन को कुचलने का प्रयास करते रहते है जो की कभी अंग्रेजी हुकूमत ने किया था आज जनता के द्वारा जनता के हित में चलाये जाने वाले आन्दोलन की कितनी प्रासंगिकता है यह खुद अन्ना के आन्दोलन ने साबित कर दिया जब ४ दिनों तक आम जनता जिसे ना तो अन्ना की जात का पता है और ना ही किसी पार्टी का यदि समर्थन कर रहे है तो सिर्फ इस लिए की जनता को अन्ना ने संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों से अवगत करवाया है आज अन्ना के साथ अलग भाषा ,अलग भेष के लोग सिर्फ हाथ में तिरंगा लिए अपने अधिकार के लिए लड़ने मरने के लिए खड़े हो चुके है जिन्हें सम्पूर्ण आजादी की एक मात्र चाहत है और जब जनता जागती है तो बड़े बड़े सिंघासन भी डोलने लगते है जो की डोलने लगा है .
Read Comments