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गुरु का स्थान भगवान से भी बड़ा माना गया है किन्तु आज वही गुरु शिष्य परम्परा दम तोडती नजर आ रही है .आखिर क्यों अपना सम्मान गुरु जी खोते जा रहे है क्यों शिष्य आज उनका वो सम्मान नहीं करते जो की उन्हें करना चाहिए .शिक्षक दिवस मात्र रस्म भर रह गया है .मुझे याद आता है वो दिन जब हम विद्यालय में पढ़ते थे दूर से ही मास्टर साहब को आते देख सम्मान में सिर झुक जाता था लेकिन अब गुरु के प्रति वो सम्मान कही नहीं दीखता क्यों इतनी गिरावट आई .की जो गुरु हमें शिक्षित कर समाज में खड़ा करने लायक बनाता है हम उनका सम्मान करना ही भूल गए .गुरु जी खुद को आज धन एकत्रित करने का साधन क्यों बनाने में जुटे है यह सोच कर बड़ी चिंता होती है लेकिन इस के लिए भी मै खुद और समाज के द्वारा बनाई गई उस सोच को जिम्मेवार मानता हु जिस सोच की वजह से आज गुरु गोविन्द से बलिहारी ना होकर गुरु चंद रूपये की खातिर खुद को उस राह पर ढालने लगे है जहा उनकी गरिमा कम होती गई है . आज गुरु जी शिक्षा को बाजार बना चुके है और छात्र को खरीददार गुरु जी के लिए सप्ताह का मतलब सोमवार ,बुधवार और शुक्रवार या मंगलवार ,गुरूवार और सनिवार मात्र रह गया है उनके लिए छात्र सिर्फ आय के साधन मात्र रह गए है और शिक्षा एक व्यापर का रूप ले चूका है ना की कर्तव्य आज ऐसे ऐसे गुरु मिल जायेंगे जिन्हें ककहरा तक मालूम नहीं लेकिन खुद को उच्य कोटि का बतलाते नहीं थकते .२१ वि सताब्दी में शिक्षा क्षेत्र में जितनी गिरावट भारत में आई सायद ही किसी और क्षेत्र में आई हो .बड़े बड़े विस्व्द्याल्या खुल गए .शिक्षा का बाजारी करण हो गया यही नहीं कुकुरमुत्ते की तरह गुरु भी पनपे जिन्होंने खुद को योग्य दिखने के लिए छड़ी नहीं कम्पुटर का सहारा लिया .बड़े पैमाने पर ऐसे लोगो को शिक्षक बनाया गया जिन्हें खुद कुछ पता नहीं वो छात्रों का क्या भला करेंगे और राजनेताओ ने भी यह देख कर कभी इन शिक्षको को रासन कार्ड तो कभी वोटर कार्ड बनाए में लगाया ऐसे में ये शिक्षक छात्रों को गोविन्द से मिलाने के बजाये गोविन्द से दूर ही करते नजर आते है इस लिए वर्त्तमान में शिक्षक दिवस की प्रासंगिकता कम होती नजर आ रही है
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