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मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती

RAJESH _ REPORTER
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मानव तश्करी एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी है बिहार के किशनगंज जिले में .नेपाल बंगलादेश सीमा से बिलकुल सटे होने का खामियाजा जिले को उठाना पड़ रहा है जिले में चल रहे चकला घरो में जिन्दगिया बर्बाद हो रही है /नेपाल और बंगलादेश की लडकियो को जहा इन चकला घरो में धकेला जा रहा है वही जिले के ग्रामीण क्षेत्रो की लडकियो को भी बहला फुसला कर इन चकला घरो में गुमनाम जिंदगी जीने को मजबूर किया जा रहा है .सबसे कम साक्षरता दर वाले किशनगंज जिले में मानव तश्करी के जो आकडे सामने आये है वो बड़े ही चौकाने वाले है पिछले ६ महीने में ही दर्जनों लडकियो को बिकने से बचाया गया है कही पुलिस की तत्परता तो कही सामाजिक जागरूकता ने इन लडकियो की जिंदगियो को बर्बाद होने से बचा लिया लेकिन सब इतने भाग्यशाली नहीं है पिछले १० वर्षो में ग़ुम /लापता हुई लडकियो के आकडे(१०० से अधिक ) बेहद ही महत्व रखते है की किस तरह से सिमांचल का यह जिला बेटियो की खरीद फरोख्त का मुख्य केंद्र बन चूका है /रविया ,सोनी ,नुसरत ,फातिमा ,सीमा ,(काल्पनिक नाम )आदि कई ऐसी लडकिया है जो वर्षो से लापता है परिवार वाले ढूंढ़ – ढूंढ़ कर अंत में थक कर बैठ गए आखिर बेचारे करे तो क्या करे इन लडकियो के ग़ुम होने के पीछे कारण भी कोई और नहीं प्रेम की जाल में भोली भाली लडकियो को दलालों ने तो कही कही सगे सम्बंधियो ,पड़ोशियो ने ही कुछ रूपये की खातिर बेच डाला .उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक चकला घर से लौट कर आई एक लड़की को तो उसकी सगी नानी ने ही बेच डाला ऐसे दर्जनों मामले है जहा सौतेली माँ तो कही सौतेला बाप तो कही पति ने ही रूपये के खातिर जिंदगियो का सौदा कर डाला है जिले में दर्जनों चकला घर प्रसाशन और समाज सेवी संगठनों का मुह चिढाते दिख जायेंगे सहरी क्षेत्रो की तो बात जाने दे ग्रामीण क्षेत्रो में भी ये चकला घर मौजूद है जहा साम होते ही रंगीनिया अपने चरम पर होती है और इन रंगीनियो में बचपन को कुचलने का काम खुले आम होता है ऐसा नहीं है की इन चकला घरो के विरोध में स्वर नहीं उठे लेकिन हर उठने वाले स्वर को कुछ दिन बाद दबा देने का काम भी कर दिया जाता है तश्कारो का नेटवर्क इतना मजबूत और हमारा कानून इतना कमजोर है की इसका लाभ खुले आम तश्कारो द्वारा उठाया जाता है कुछ दिन की सजा काटने के बाद ये फिर से अपने धंधे में लग जाते है और एक नया शिकार ढूंढ़ते है /.क्या होता है बचाई गई लडकियो का ? जिन लडकियो को चकला घरो से बचाया जाता है या बच निकलती है उनके लिए सरकार द्वारा अभी तक वैसी कोई कल्याण कारी योजना नहीं बनाई गई है जिससे की उनका जीवन सुधर सके मात्र बचाई गई लडकियो को अल्प आवाश गृह में कुछ दिन के लिए रख दिया जाता है बाद में ये लडकिया यदि परिजनों ने स्वीकार किया तो अपने घर चली गई या फिर से चकला घर पहुचने को मजबूर हो जाती है यही इनकी नियति बन जाती है हलाकि कई गैर सरकारी संगठन माना तश्करी पर कार्य कर रही है लेकिन इनका काम कागजो पर ही सिमटा हुआ है ऐसे में जरुरत है की मानव तश्करी के पुरे नेटवर्क को जड़ से समाप्त किया जाये लोगो में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलया जाये जिससे की बचपन काल कोठरी में गुमनाम होने से बच सके .

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