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डॉक्टर भगवान या व्यापारी ?

RAJESH _ REPORTER
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डॉक्टर जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी भगवान का दूसरा रूप मानती आई है क्या आज वैश्वीकरण के दौर में भी उनमे भगवान का रूप आम इसान देखता है शायद ऐसा नहीं है / २० वी सताब्दी तक तो डॉक्टर सहज सुलभ दीखते थे और उनमे सेवा भावना भी नजर आती थी लेकिन २१ वी सताब्दी में स्वयं को इन्होने इतना निचे गिरा लिया की अब ये भगवान नहीं व्यापारी नजर आने लगे है आखिर जिस चिकित्सा कार्य को सेवा कार्य माना जाता था आज वही सेवा कार्य मेवा प्राप्ति का जरिया बन चूका है.बड़े बड़े नर्सिंग होम लुट का अड्डा बन चुके है वही जिन्होंने अपना क्लिनिक खोला है उनका चहुऔर कमीसन सेट है चाहे पैथोलोजी हो या x – ray सेण्टर पहले से सेट है यदि आप दुसरे सेण्टर पर जाच करवाते है तो उसे सैकड़ो खामिया निकली जाती है .बिना जाच के कोई दवा नहीं लिखेंगे जबकि चाहे तो लिख सकते है लेकिन हलकी बीमारी में भी जाच अति आवश्यक है अरे क्या काबिलियत है आप में / दवा इतनी महंगी लिखेंगे की आम आदमी दवा खरीदने के बजाय मरना पसंद करे /क्योकि दवा में भी इनका नजराना बड़ी कंपनियो से पहले से ही सेट है कंपनिया इन्हें मोटा रुपया देती है दवा लिखने के लिए और उसपर पहले रुपया जमा लेंगे फिर उपचार करेंगे जमा राशी से अधिक का बिल हो गया तो बिना भुगतान किये आप जा नहीं सकते आप को कैद करके रख लिया जायेगा यही नहीं कभी कभी तो नर्सिंग होम वाले मृत शारीर को कब्जे में रख लेते है जब तक परिजनों द्वारा राशी का भुगतान नहीं होता डैड बॉडी नहीं दी जाती अब परिजन चाहे भीख मांग कर लाये या अपना अंग बेच कर . अभी हाल ही में समाचार पत्रों में खूब छाया रहा की बड़े पैमाने पर चिकित्सको ने अपने लाभ के लिए महिलाओ के गर्भाशय निकाल डाले और तो और सैकड़ो चिकित्सको ने मानव अंगो की विक्री जैसा घिनौना कार्य करके भी इस सेवा क्षेत्र को बदनाम किया .कभी कभी तो सूने में आता है की चिकित्सक ने महिला मरीज का बलात्कार तक कर डाला /देश के ग्रामीण क्षेत्रो के हालात और भी ख़राब है यहाँ झोला छाप चिकित्सको की बाढ़ है और ” निम् हाकिम खतरे जान ” वाली कहावत चरितार्थ होती है / देश में आज २००० लोगो पर एक (१) चिकित्सक है / १:२००० हलाकि ये अनुपात काफी कम है अन्य विकास शील देसों के अनुपात में लेकिन इतने कम अनुपात के बावजूद भी चिकित्सक अपना धर्म भूल चुके है आये दिन इनकी वजह से सैकड़ो जाने जाती है क्योकि थोड़ी सी बात पर साहब हड़ताल पर चले जाते है अब आप मरे या बचे इन्हें इन बातो से कोई लेना देना नहीं इन्हें तो सिर्फ अपना लाभ दिखता है जबकि सरकारी अस्पतालों में बहाल चिकित्सको को मोटी तनख्वाह के साथ साथ कई अन्य सुबिधा भी सरकार प्रदान करती है उसके बाबजूद इनकी कार्यशैली आप को दिख ही जाएगी जब आप सरकारी अस्पताल पहुचेंगे .जहा ये मरीज को मरीज नहीं कुत्ता बिल्ली समझते है /वही निजी क्लिनिक चला रहे डॉक्टर भी मरीज से मोटी फ़ीस की उगाही करते है १० वर्षो में इनके फ़ीस में चार से आठ गुना बढ़ोतरी हो चुकी है लेकिन उसके बाद भी डॉक्टर सेवक कम शोषक अधिक नजर आते है इनमे धन बटोरने की लालसा इतनी बढ़ चुकी है की अब ये मरीज को मरीज नहीं हलाल होने वाला मुर्गा समझते है क्योकि आज तक इनका कोई कुछ बिगड़ नहीं पाया मेडिकल काउन्सिल ऑफ इंडिया में चिकित्सको के खिलाफ हजारो सिकायत पड़ी हुई है लेकिन सिकयातो के बाद भी कोई करवाई नहीं हुई है इससे इनका मनोबल इतना उचा उठ चूका है की ये किसी को कुछ समझते ही नहीं .इन तमाम कार्यो ने आज चिकित्सको से भगवान का दर्जा छीन लिया है आज जरुरत आन पड़ी है की चिकित्सक अपना आत्म मूल्याकन करे और अपनी खोई हुई गरिमा को प्राप्त करने का प्रयाश करे ना की धन की लालशा में व्यापारी बन जाये ..प्रथम भाग

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