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प्रिय पाठक बंधू एव ब्लोगर मित्रो आज १३ वे राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे हमारे सामने आ चुके है और पोलटु दादा रायसीना तक पहुचने में कामियाब भी हो चुके है.अभी तक जो तर्क और कुतर्क चल रहे थे सभी पर विराम लग चूका है आदिवासी मानुष का चोला ओर्ढे संगमा को करारी हार मिली है लेकिन क्या सभी भारतीयों को प्रणव मुखर्जी जी स्वीकार्य है मुझे ऐसा नहीं लगता क्योकि प्रणव दादा ने जिस कांग्रेस का समर्थन किया वो आज भारतीयों को लगभग अस्वीकार्य हो चुकी है किन्तु राजनितिक उठापठक और गटबन्धनों की तथाकथित राजनितिक मजबुरियो ने आज प्रणव मुखर्जी को राइसीना तक पंहुचा दिया है हलाकि प्रणव दादा का राजनितिक केरियर बहुत पुराना है और इन्होने कांग्रेस के लिए संकट मोचन का काम किया है लेकिन क्या संकट मोचक और एक परिवार विशेष की वफ़ादारी ही देश के सर्वोच्य पद तक पहुचने की योग्ता है मै ऐसा नहीं मानता क्योकि राष्ट्रपति का पद भले ही भारतीय संविधान में उतना व्यापक महत्व ना रखता हो लेकिन राष्ट्र अध्यक्ष होने की वजह से इसके कई महत्व तो है ही किन्तु इनके पूर्व के कार्यकाल को यदि देखा जाये तो इन्होने कुछ भी वैसा नहीं किया जो की याद रखा जाये इन्हें सिर्फ यदि याद किया जाता है तो मनमोहन नित कांग्रेस सरकार के तारण हार के रूप में जबकि यह होना नहीं चाहिए हलाकि कांग्रेस ने इससे पूर्व भी प्रतिभा पाटिल को इस पद पर बिठा कर साबित कर दिया है की वफ़ादारी का इनाम यदि कोई दे सकता है तो एक मात्र पार्टी कांग्रेस पार्टी है और अब दूसरी बार प्रणव दादा को इस पद पर बिठा कर आम जनमानस को सोचने पर मजबूर कर दिया है वित् मंत्री रहते हुए पोलटु दादा ने भारत की अर्थ व्यवस्था का बंटाधार कर ही दिया था और अब इस देश के राष्ट्र अद्यक्ष बन बन कर क्या करेंगे .संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु और मुंबई में सैकड़ो लोगो की जान लेने वाले कसाब के फासी की सजा को बरक़रार रख कर देश को सन्देश देंगे ऐसा नहीं लगता तभी तो राष्ट्रपति बन्ने के बाद अपने पहले साक्षात्कार में इन्होने इस मामले पर कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया जबकि सभी भारतीयों की यह मांग है की इन्हें फासी के तख्ते तक पंहुचा दिया जाये क्या ये जनता की भावना का ख्याल रखेंगे या अपने पूर्वर्ती प्रतिभा पाटिल की तरह ही इस मामले को भी ठन्डे बसते में डालने का काम करेंगे यह भी पूरा देश देखेगा की यह ८४ वर्षीया बंगाली मानुष भारत की गरिमा को कैसे बरक़रार रखता है .
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