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सीटों के हिसाब से विधानसभा चुनाव के नतीजे भले ही बीजेपी के लिए बेहद खराब रहे हैं, मगर साफ तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि वोटर उससे छिटके हैं। इस बार बीजेपी को 32.2 फीसदी वोट मिले हैं, जो पिछली विधानसभा चुनाव की तुलना में 1 सिर्फ फीसदी कम हैं। 2013 में विधानसभा चुनावों बीजेपी का वोट शेयर 33.03 फीसदी था। इस लिए कहा जा सकता है की एक सोची समझी साजिश के तहत छद्म धर्मनिरपेक्षता का चोला ओढ़े नेताओ ने अपनी जमीन खिसकती देख केजरीवाल के कंधे पर बन्दुक रख कर राष्ट्रवादी सरकार को कमजोर करने की साजिश रची जिसमे कांग्रेस के उम्मीदवारों को मोहरा बनाया गया जिस वजह से कांग्रेस के तिरसठ उमीदवारो की जमानत दर्ज हो गई। जानकारों का मानना है की दिल्ली चुनाव में यदि भाजपा की जीत होती तो निकट भविष्य में बिहार बंगाल और उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव में भी इसका असर पड़ता और इन राज्यों की सत्ता रूढ़ पार्टियो को इसका भय सता रहा था जिस वजह से साम दण्डः भेद की नीति अपना कर भाजपा की बढ़ती लोकप्रियता को कमजोर करने के मकसद से रातो रात इन लोगो ने मुश्लिम मतदातों के मतों को एक मुश्त इमामो और धार्मिक गुरुओ के जरिये केजरीवाल के उमीदवारो को वोट देने हेतु प्रेरित कर एक सांप्रदायिक राजनीती की यही नहीं सुरक्षा जानकारों का कहना है की पाकिस्तान चीन बांग्लादेश सहित तमाम खाड़ी देसो ने भी आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली में बने इसके लिए हिन्दुस्तान में बैठे उनके रहनुमाओ ने भी काम किया ताकि दिल्ली चुनाव में हार के बाद केंद्र सरकार कमजोर पड़े और ये केजरीवाल के सहारे अपनी डूबती नैया को सहारा दे सके ? दिल्ली के परिणाम ने नितीश ममता लालू मुलायम को एक संजीवनी दे दी है और अब ये पुरे दम ख़म के साथ मैदान में उतर गए है जैसा की इनके बयानों से ही साफ़ जाहिर होता है इस लिए भाजपा नेतृत्व और केंद्र सरकार को भी इन्हे करारा जबाब देने के लिए ठोस रणनीति बनाने के साथ साथ अपने पॉकेट वोट को एकजुट रखने का प्रयास अभी से आरम्भ कर देना चाहिए।
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