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नेपाल और हिंदुस्तान में आये विनाशकारी भूकम्प ने एक बार फिर प्रकृति के रौद्र रूप से परिचय करवा दिया है हम जब जब स्वयं को प्रकृति से ऊपर समझने लगते है तब तब प्रकृति हमें यह आभास करवा देती है की उससे ऊपर कोई नहीं प्रकृति के अत्यधिक दोहन का सिलसिला अब भी नहीं रुका तो वो दिन दूर नहीं जब हम सब कुछ गवा चुके होंगे। शनिवार को आये विनस्कारी भूकम्प ने हजारो जिंदगियो को देखते देखते स्वयं में समाहित कर लिया विज्ञानं मूकदर्शक बन देखता रह गया और लोग काल के गाल में समाते चले गए ऐसे विनाश कारी भूकम्प से नई पीढ़ी परिचित नहीं थी नई पीढ़ी विज्ञानं को ही सब कुछ समझ बैठी थी लेकिन एक परम सत्ता भी है जो इस भूलोक को संचालित करती है अब सायद उसे समझ में आये और इससे सिख ले की प्रकृति का दोहन ना सिर्फ विनस्कारी है यह प्रलयंकारी भी है जो देखते देखते सब कुछ समाप्त कर सकती है। नेपाल प्रकृति के गोद में बसा है जिसकी सुंदरता प्रकृति ही है ना की उचे उचे मीनार लेकिन नेपाल के लोगो ने विकाश की चाहत में प्रकृति की खूब अनदेखी की और पहाड़ो को काट काट कर मीनार खड़ा करते गए जिसका नतीजा हमारे सामने है एक ही झटके में सब कुछ समाप्त हो गया। . अब भी समय है की लोग इस प्रलय से सिख ले और प्रकृति से खिलवाड़ बंद करे ताकि किसी माँ की गोद असमय सुनी ना हो नेपाल और भारत में मृत आत्माओ को विनम्र श्रद्धांजलि। भगवन पीडितो को इस दुःख को सहने की सहनशक्ति दे।
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